Wednesday, July 2, 2014

क्यों ओठ और मन नहीं मिल रहे है !!

परत दर परत खुल रहे है,
दीवारों के जैसे दरक रहे है,

ये तेरे कैसे एहसास है,
क्या हुआ है ज़बान को आज,

क्यों ओठ और मन नहीं मिल रहे है !!

चाहत तो है एक दरिया सा फूटने की,
तफ्सीस से कुछ कहने की, और सुकून से सब सुनने की,

पर मन की गाँठे हैं की खुलती ही नहीं है,
ये कैसी बर्फ की चट्टानें  है जो पिघलती ही नहीं है,

नहीं होता अब वो जुनूनी सफ़र,
देख लेता हूँ वक़्त-ए -नज़ाकत,

तभी तो नकली हंसी भी असली सी हँसता हूँ,
वक्त ही मेहरबां है जो उधड़े  से ज़ख्म  भी सिल  रहे हैं,

क्यों ओठ और मन नहीं मिल रहे है !!

Tuesday, June 28, 2011

ब्लॉगचर्चा रवीन्द्र-व्यास ...तुम्हारे मन की..... ब्लॉग की चर्चा रवींद्र व्यास के द्वारा

तुम्हारे मन की.....  ब्लॉग की चर्चा रवींद्र व्यास के द्वारा उनके ब्लॉग "ब्लॉगचर्चा" पर... .......................



मन की सीधी-सादी बातें करता एक ब्लॉग इस बार ब्लॉग-चर्चा में कविता का ब्लॉग.........
ऐसे ही एक नए ब्लॉगर हैं सूर्यप्रकाश यादव। उनका ब्लॉग नया है। 

यहाँ उन्होंने कविताएँ पोस्ट की हैं। ये कविताएँ छोटी-छोटी हैं। मन की बाते हैं। एक कविता है ' तू और मैं' । इसमें बहुत सादा बात कहने की कोशिश है कि दो किनारे कैसे समानांतर चलते हैं और कभी मिल नहीं पाते हैं। इसी तरह से ' तू मन को लुभाए जाती है' कविता भी मन की बात कहती है। इसमें बारिश है, पतंग उड़ाने की यादें हैं, पीले फूल हैं। यानी जीवन की वे यादें जो हमें कुछ ज्यादा मनुष्य और कुछ ज्यादा मानवीय बनाए रखती हैं जो हमें हमेशा लुभाती रहती हैं।..........


ये कविताएँ जीवन के लुभाए जाने के बारे में है। लेकिन इसमे लुभाने की कोई अदा नहीं है बल्कि सीधी सी बात को सादे ढंग से कहने की सरल कोशिश है। यहाँ कुछ फोटो भी पोस्ट किए गए हैं। गाँधी और गाँधियों पर एक पोस्ट है लेकिन ज्यादातर कविताएँ हैं।



ये रहा इसका पता-

http://yadavsurya.blogspot.com/


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अधिक पड़ने के लिये नीचे लिंक पर क्लिक/एड्रेस बार पर पेस्ट करते  करे ....



http://hindi.webdunia.com/%E0%A4%AE%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%A7%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80/%E0%A4%AE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%A7%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97-1091020108_1.htm



Tuesday, January 5, 2010

यादें और जीवन...


जो यादें जाती जीवन से..                              
बादल बनकर उड़ जाती..
व्यथित चित्त को दे जाती..
एक नव जीवन का अहसाश..


परिभाषाओ सा जीवन है..
कुछ अभिलाषाओं सी यादें है..
जीवन व्रत अभिमानित है..
नूतन स्वप्न सजाने को..



"सूर्य" जो होता द्रवित मन...
नयन सजल हो जाते है..
जो यादें जाती जीवन से..

बादल बनकर उड़ जाती....




....................................

समय:- काफी समय बाद कल कुछ शब्द लिखे...
उन्ही को आज की पोस्ट मै लिखा है.....

Thursday, June 18, 2009


अभी एक दिन खंडाला जाने का मौका मिला..... हम दो ही लोग थे जाने वाले...सफ़र की शुरुआत पुणे की लोकल ट्रेन से हुई..कार्ला की गुफाये देखने गए......गुफ़ायें एक पहाड़ी को काट के बनाई गयीं हैं...नीचे कि तसवीर, पारम्परिक "बुलबुल सितार" पर गाते हुऐ एक लोक गायक कि है......

Tuesday, May 19, 2009

तू और मैं......

तू और मैं,
जैसे समनांतर रेखायें,
जो, इक तल में,
और इक ही तो दिशा में,
चलती है,

हाँ,


नदी के किनारे भी तो साथ ही चलते है,
अपने आंचल मैं,
लहरों को भरते है,


पर,


कुछ बात अलग सी है,
कुछ तो इनकी दूरी भी तो है,
समान रास्तों से,
मनज़िलें कहां मिलती है,




वैसे भी,

समनांतर रेखायें कभी नही मिलती है।।



(c)तुम्हारे मन की...जो मैने कही...

Friday, May 15, 2009

इस मन को लुभाये जाती हैं..........

...वो नीम का पेड़,
और बचपन कि यादें,
आज फ़िर से ना जाने क्यों,
इस मन को लुभाये जाती हैं,


नीम और उसके सफ़ेद फ़ूल,
मिट्टी कि खुशबू,
छत पर भरी दुपहरी का जोर,
उस पर हाथ मैं पतंग कि डोर,
इस मन को लुभाये जाती हैं,


वो तितली कांटों के पर क्यों,
पीले फ़ूल इतने पीले कैसे,
बारिश इतनी मीठी क्यों,
ये सवाल अब क्यों नहीं होते,


...वो नीम का पेड़,
और बचपन कि यादें...


(c)तुम्हारे मन की...जो मैने कही...

Thursday, April 16, 2009

चेहरे पर रखो नूर कि बारिश ..... The Joy...


चेहरे पर रखो नूर कि बारिश
और खयालों मैं खुशियों कि बूंदे
चंद लम्हों की मोहताज़ है, जिंदगी
किस ओर मुड़ जाये,
कभी ना जान पाओगे,

वक्त को किसने रोका है,
ये तो समय कि धारा है,
हर पल जो आता,
ओर जब जाता है,
कभी ना जान पाओगे,

निकल कर बाहर अपने इस बिंब से,
आज कुछ ओस कि बूंदे चुनो,
अपनी सूखी हथेली को दो,
एक नव जीवन,
जो अब जान जाओगे,

चेहरे पर रखो नूर कि बारिश ।।।

(c):तुम्हारे मन की...जो मैने कही...

Monday, April 13, 2009

कुछ बातें अनकही रह जाती है.....The Wait


कुछ बातें अनकही रह जाती है,

कुछ बातें कभी नहीं कही जाती है,

जो तुम जान जाते,

वो बातें जो हम कह पाते,

तो ये उदासियाँ का होती इन राहों में ,

और न होते बदलते एहसास,

ना होते इस तरह खामोश हम,

और न होते इस तरह खामोश तुम,

मेरी सारी यादें, तेरी सारी कहानियां,

अब तो याद ना आएँगी,

अगर न रह जाती,

कुछ बाते अनकही,

कभी नहीं कही जाती है.......


c) :: तुम्हारे मन की...जो मैने कही... ::

Friday, April 10, 2009


जलते भुझते दीप..

रोज़ हवा से लड़ते,
थिरकती पवन,
मचलती लौ उनकी,
जैसे मचलता ये मन,
और दूर कहीं,
गाती हुई पवन,
यादों के झरोखो से,
झांकता ये मन.........

(c) :: तुम्हारे मन की...जो मैने कही... ::

Wednesday, October 1, 2008

क्या भारत गाँधी और गांधियों का ही देश है..

तो हो जाए कुछ बातें......
अब कल बापू का जन्म दिन है, सारा देश उनको याद करेगा, और करना भी चाहिये..
हमारे बिट्स परिसर में भी बापू की एक मूर्ति है...गाँधी चौक...
साधारण दिनों मे तो एक पंछियो के मिलने का स्थान हे, पर कल कुछ अलग बात होगी..
आज शाम से ही बापू को नहला धुला कर तेयार किया गया...
मैस जाते समय कुछ अलग ही नजारा दिख रहा था...आज फ़िर मन में विचार आया ....
क्या भारत गाँधी और गांधियों का ही देश है..
बस विचार ने सोचने पर मजबूर कर दिया.....खाने की टेबल पर,
जो पहले से ही हमारे रोहित भाई के ठहाको से गुंजायमान थी...हमने अपना ये भरी भरकम विचार परोस दिया....
माहोल अचानक से जेसे ठहर गया, हमने दूसरा प्रहार किया...क्या अभी कुछ दिनों पहले शहीद शिरोमणि सरदार भगत सिंह का जन्म दिन किसी को याद हें, कुछ सहमती और कुछ अनभिज्ञता के सर हिले, पर एक बात सुब सहमत हुए की आज़ादी का मतलब सिर्फ़ गाँधी नही और ना ही भारत का........
पर सवाल तो अपना असर छोड़ चुका था.....